भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण तथा प्रभाव लिखिए

जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण बहुत से हैं जिनका हम यहाँ उल्लेख करेंगे. किसी देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में वहां की जनसंख्या का बहुत बड़ा योगदान होता है.

लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे भारत देश की जनशक्ति वरदान बनने की अपेक्षा अभिशाप बन गई है.  भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि जिंदगी की समस्या इस समय भारत की सबसे बड़ी आर्थिक और सामाजिक समस्या है.

 भारत में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति

बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में हमारे देश की जनसंख्या 23.84 करोड़ थी.  जो वर्ष 2011 की  जनगणना के अनुसार 121.02  करोड़ हो गई.

वर्षजनसँख्या (करोड़ में)
190123.84
195136.11
196143.92
197154.82
198168.33
199184.63
2001102.87
2011121.02
 भारत में जनसंख्या वृद्धि के आंकड़े

इन आंकड़ों से पता चल सकता है कि हमारे देश की जनसंख्या कितनी तेजी से बढ़ रही है.

 भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा देखा जा सकता है-

1: ऊंची जन्म दर

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण में ऊँची जन्म दर भी है. जन्म दर से तात्पर्य 1 वर्ष की प्रति हजार जनसंख्या के पीछे बच्चों के जन्म से है. भारत में वर्तमान में यह दर 22.5 है, जो अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी ऊंची है.

भारत में ऊँची जन्म दर के मुख्य कारण

सामाजिक विश्वास, परिवारिक मान्यता, शादी की अनिवार्यता, बाल विवाह, ईश्वरीय देन, मनोरंजन के साधनों का अभाव, मनोरंजन के साधनों का भाव, गर्म जलवायु, ग्रामीण क्षेत्रों में विरोध सुविधाओं की कमी जैसे इसी तरह के कुछ कारण हैं जो भारत में ऊंची जन्म दर में भी जनसंख्या की तीव्र गति में वृद्धि की है.

2: अशिक्षा की दर

भारत में साक्षरता का स्तर  अभी भी कुछ हद तक कम है, और निरीक्षर व्यक्ति परिवार नियोजन को अधिक महत्व नहीं देते हैं. जिसके कारण भारत की जनसंख्या में वृद्धि देखने को मिलती है . इसके लिए भारत को साक्षरता को अधिक बढावा देना होगा .

3: निम्न जीवन स्तर

निम्न जीवन स्तर के कारण ज्यादातर लोगों के लिए योन संबंध ही मनोरंजन का एक मुख्य साधन रहता है. इसके साथ यह भी समझा जाता है कि जितने अधिक बच्चे होंगे परिवार की आमदनी उतनी ही अधिक बढ़ेगी.

4: कम आयु में विवाह

भारतवर्ष में सामान्यतः और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कम आयु में विवाह की प्रथा प्रचलित है. जिसके कारण शादी के बाद मां द्वारा संतान उत्पन्न करने की अवधि काफी लंबी रहती है. यह भी जनसँख्या वृद्धि का एक कारण है.

5: सामाजिक एवं  धार्मिक मान्यताएं

हमारे देश में सामाजिक एवं धार्मिक परंपराएं भी जनसंख्या वृद्धि में सहायक रही हैं. सामाजिक मान्यताओं के अनुसार ऐसी स्त्री को थोडा गलत समझा जाता है जिसके संतान नहीं होती.

धार्मिक विचारों के अंतर्गत हिंदुओं में कम से कम एक पुत्र का होना आवश्यक माना जाता है. हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ में लिखा है कि “ बिना पुत्र प्राप्ति के मनुष्य को न इस लोक में सुख मिलता है और ना ही परलोक में मुक्ति मिलती है. केवल पुत्र के जन्म से पिता को सब लोकों पर विजय प्राप्त होती है. पौत्र के जन्म से वह अमर हो जाता है और उसके पश्चात प्रपोत्र के जन्म से उसको सीधा स्वर्ग लोक प्राप्त होता है”.

अतः भारत में धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं का प्रभाव जन्म दर पर पड़ता है.

6: सामाजिक सुरक्षा

मां बाप की यह भावना भी जन्म दर को बढ़ाती है कि बच्चे बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे. और वे इसी बात को लेकर विवाह के बाद बच्चे पैदा करने में जल्दबाजी करने लगते हैं.

7: भाग्य बादिता

भारत में अधिकांश लोग भाग्यशाली हैं, जो संतान को भगवान की देन मानते हैं और निरोधक उपायों में विश्वास नहीं रखते हैं. ऐसे लोग निरोधक को गलत समझते हैं. यह भी भारत में जनसंख्या वृद्धि का कारण है.

8: जलवायु  और भौतिक परिस्थितियां

भारत में जनसंख्या वृद्धि का कारण, गरम देशों में ठंडे देशों की तुलना में विवाह जल्दी किया जाता है, क्योंकि जलवायु के प्रभाव से परिपक्वता की अवस्था शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है, इसलिए संतान उत्पत्ति की अवधि अधिक होने के कारण जन्मदर का बढ़ना स्वाभाविक हो जाता है.

9: शरणार्थियों का आगमन एवं विदेशों से भारतीयों का निकाला जाना

सन 1947 में भारत का विभाजन होने के कारण करोड़ों लोग शरणार्थी के रूप में भारत आए. सन 1964 में भी पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान से काफी संख्या में शरणार्थी भारत आए.

सन 1971 में भी एक करोड़ व्यक्ति बांग्लादेश बनने के समय भारत आए और अब श्रीलंका, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कुवैत आदि देशों से आ रहे हैं.  इस प्रकार इन शरणार्थियों के आने से भी जनसंख्या में वृद्धि हुई है.

पिछले कुछ वर्षों से विदेशों में बसे भारतीयों को वहां से निकाला जा रहा है और वे भारत में ही आकर बस गए हैं. इन देशों में श्रीलंका, मलेशिया, ब्रिटेन, अमेरिका, वर्मा, ईरान एवं कीनिया प्रमुख हैं. इस कारण भी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है. तो यह थे कुछ महत्वपूर्ण भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण.

 जनसंख्या विस्फोट के प्रभाव

भारत की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है, क्योंकि इसके द्वारा अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं.  अधिकांश लोग तो भारत की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को अभिशाप मानते हैं, इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं-

1: आमदनी, बचत एवं विनियोग की दरों में कमी

एक देश की जनसंख्या वृद्धि उस देश की आम नहीं, यह बचत एवं विनियोग पर प्रभाव डालती है. देश के आर्थिक विकास के फलस्वरुप जिस आय का सृजन होता है, उसे बड़ी हुई जनसंख्या के भरण-पोषण पर व्यय करना पड़ता है, जिसके परिणाम स्वरुप पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि नहीं हो पाती है.

भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.95% प्रतिवर्ष है, जबकि 2008-09 में सकल पूंजी निर्माण की दर 34.9% रही. यदि जनसंख्या वृद्धि दर इतनी अधिक ना हो तो पूंजी निर्माण की दर इससे कहीं अधिक होती. जिसका देश के आर्थिक विकास पर अच्छा असर पड़ता है.

2: जनोपयोगी सेवाओं के भार में वृद्धि

जनसंख्या में वृद्धि होने पर उसका दबाव जन उपयोगी संस्थाओं जैसे- अस्पताल, परिवहन, विद्युत, जल, मकानों आदि पर पड़ता है तथा सरकार को कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी मात्रा में खर्च करना पड़ता है.

3: खाद्दान्न  पूर्ति की समस्या

अगर भारत में खाने पीने के उत्पादन में निरंतर वृद्धि हो रही है लेकिन फिर भी जिस अनुपात में जनसंख्या में वृद्धि हो रही है उस अनुपात में अनाज का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है.  अतः खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ने के बावजूद भी इनकी कमी दिखाई पड़ती है. जिसकी पूर्ति के लिए अरबों रुपयों का सामान विदेशों से मंगाना पड़ता है.

4: श्रम शक्ति में वृद्धि

जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ श्रम शक्ति “ कार्यशील जनसंख्या” में भी वृद्धि होती है.  अतः जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ देश में रोजगार चाहने वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जाती है. लेकिन रोजगार के अवसरों में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हो पाती है.  इसलिए जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारी की समस्या भी गंभीर होती जाती है.

5: मूल्य स्तर में वृद्धि

जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ वस्तु एवं सेवाओं की मांग में वृद्धि होती जा रही है, लेकिन इसके उत्पादन में अपेक्षाकृत कम वृद्धि होती है, जिसके कारण मूल्य स्तर में वृद्धि हो जाती है.  मूल्य स्तर में होने वाली अनावश्यक वृद्धि देश के आर्थिक विकास को प्रभावित करती है.

6: उत्पादन की तकनीक पर प्रभाव

जनसंख्या वृद्धि के कारण उत्पन्न हुई बेरोजगारी की समस्या की गंभीरता को कम करने के लिए ही पूंजी प्रधान तकनीक के स्थान पर श्रम प्रधान तकनीक को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.  श्रम प्रधान तकनीक के कारण प्रति इकाई उत्पादन लागत अधिक आ रही है, जिसके कारण आर्थिक विकास की गति धीमी बनी हुई है.

7: कृषि एवं उद्योगों के विकास में बाधा

बढ़ती हुई जनसंख्या केवल उद्योगों के विकास में बाधक नहीं है बल्कि यह  कृषि के विकास में भी बाधक बनी हुई है. बढ़ती हुई जनसंख्या कृषि का तीव्र गति से विकास नहीं होने देती क्योंकि परिवार के सदस्य बढ़ने से भूमि का उप विभाजन एवं खंडन होने लगता है.

यह प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि का औसत घटने लगता है. भारत में सन 1921 में यह औसत 1.11 हेक्टेयर था जो वर्तमान में घटकर केवल 0.43 हेक्टेयर रह गया है.