मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
Munshi Premchand ka jeevan parichay – मुंशी प्रेम चंद का जीवन परिचय इनका असली नाम धनपत राय था. मुंशी प्रेमचंद 31 जुलाई सन् 1818 को बनारस से लगभग 4 मील दूर लमही नाम के एक छोटे से गॉंव में पैदा हुए थे.
इनके घर बाले इनको प्यार से नवाब या नवाब राय के नाम से पुकारते थे. इनके पिता का नाम मुंशी अजायब राय था जो लमही में डाकमुंशी के पद पर थे. प्रेम चंद की माता का नाम आनंदी देवी था.
इनकी शुरुआत की शिक्षा गॉंव में ही हुई थी. फिर इन्होने उर्दू और फ़ारसी की पढाई लिखाई पूरी करके इन्ट्रेंस की परीक्षा पास की. और एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक बन गए. लेकिन बच्चो को पढ़ाने के साथ साथ इन्होने अपनी शिक्षा भी जारी रखी और बी. ए. की डिग्री हासिल कर ली.
प्रेम चंद को बचपन से ही कहानी लिखने का शौक था. सन् 1902 में वह इलाहबाद के एक कॉलेज में प्रशिक्षण के लिए गए. वहां पंहुचकर उन्हें लिखने का शौक और बढ़ गया. और असरारे मुआबिद के नाम से उन का पहला नावेल बनारस के एक रिसाले में शामिल होना शुरू हो गया. फिर उन्होंने अफसाने भी लिखना शुरू कर दिए.
सन् 1908 में उनकी एक किताब सौजे वतन प्रकाशित हुई जो बाद में अंग्रेजो ने इसको बैन कर दिया क्यूंकि यह आज़ादी के जज्वात पैदा करती थी. फिर वह दयानारंग के मशवरे से प्रेम चंद के कलमी नाम से लिखने लगे और आगे चल कर वह इसी नाम से हिंदी और उर्दू में मशहूर हो गए.
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देश में आज़ादी की तहरीर चल रही थी तो प्रेम चंद भी महात्मा गाँधी जी से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया, और अब और भी बेबाकी से लिखने लगे. प्रेमचंद हमारे उन मशहूर लोगों में से थे जिन पर उर्दू और हिंदी जबान को हमेशा फक्र रहेगा. उनके अफसाने और नोबेल उर्दू अदब के बेशकीमती तोहफे हैं.
मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह
, प्रेमचंद का विवाह इनके पिता के कहने पर 15 वर्ष की आयु में ही हो गया था. इनके पिता ने इनकी शादी इनकी बिना मर्जी के एक ऐसी लड़की से करा दी जो इन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी. इसके बाद इनकी पत्नी का व्यवहार इनके प्रति हमेशा खराब रहता था.
इनके पिता अजायब राय की मृत्यु के बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी मुंशी प्रेमचंद के ऊपर आ गई और इसी बीच इन्होंने अपनी पत्नी को छोड़ दिया और कुछ समय बाद इन्होंने अपनी पसंद से सन- 1906 मे लगभग 25 वर्ष की उम्र में एक विधवा स्त्री शिवरानी देवी से विवाह किया और एक सुखी वैवाहिक जीवन की शुरुआत की.
मुंशी प्रेमचंद का साहित्य जीवन
मुंशी प्रेमचन्द ने इशारो ही इशारों में गरीवी और किसानों की बदहाली की ऐसी तस्वीर खीची है जिसकी कल्पना करना मुश्किल हो जाती है.
वैसे तो गॉंव के माहौल तो कई कहानीकारों ने व्यान किये हैं लेकिन जिस तरह से इन्होने ग्रामवासियों के हालात की व्याख्या की है वो बहुत ही वास्तविक लगती है. गॉंव के लोगों की रूह में उतरने का हुनर अगर किसी को था तो वह मुंशी प्रेमचंद थे.
प्रेमचंद जी अपने मुकावले में देहाती लोगों की जवान से थोड़े बहुत देहाती शब्द या देहाती लहजे में देहाती अल्फाजों का इस्तेमाल करते थे.
सभी बड़े बड़े नॉवेल निगार या उपन्यासकारो की तरह मुंशी प्रेमचन्द भी लोगों को अपने लेख से थोडा बहुत उदास करते थे, लेकिन अन्य उपन्यासकारो की तरह रुलाते नहीं थे.
क्यूंकि उनका कहना था की कहानी आदि को पढते पढते अगर कोई आदमी रोने लगता है तो वह उस कहानी से मानसिक तौर से हट जाता है. अर्थात कहानी या नाटक का पूरा पूरा मज़ा नहीं ले पाता है.
मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ
मुंशी प्रेमचन्द ने लगभग 300 से अधिक कहानियां लिखी. इन कहानियों में उन्होंने इन्सान की जिंदगी की सच्ची तस्वीर खींची है। आम आदमी की घुटन, चुभन व कसक को अपनी कहानियों में उन्होंने बाखूबी व्यान किया है.
मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में समय को ही पूर्ण रूप से चित्रित नहीं किया बल्कि भारत के चिंतन व आदर्शों को भी वर्णित किया है.
उपन्यास | वर्ष |
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गोदान | 1936 |
कर्मभूमि | 1932 |
निर्मला | 1925 |
कायाकल्प | 1927 |
रंगभूमि | 1925 |
सेवासदन | 1918 |
गबन | 1928 |
सेवासदन | 1918 |
प्रेमाश्रम | 1921 |
प्रेमचन्द की कुछ कहानियों के नाम
- नमक का दरोगा
- दो बैलो की कथा
- पूस की रात
- पंच परमेश्वर
- माता का हृदय
- नरक का मार्ग
- वफ़ा का खंजर
- पुत्र प्रेम
- घमंड का पुतला
- बंद दरवाजा
- कायापलट
- कर्मो का फल
- कफन
- बड़े घर की बेटी
- राष्ट्र का सेवक
- ईदगाह
- मंदिर और मस्जिद
- प्रेम सूत्र
- माँ
- वरदान
- काशी में आगमन
- बेटो वाली विधवा
- सभ्यता का रहस्य
- दुनिया का सबसे अनमोल रतन
- सप्त सरोज
- प्रेम-द्वादशी
- समरयात्रा
- मानसरोवर : भाग एक व दो
- नवनिधि
- प्रेमपूर्णिमा
- प्रेम-पचीसी
- प्रेम-प्रतिमा
- पंच परमेश्वर
- गुल्ली डंडा
- बडे भाई साहब