Pregnancy ke Lakshan in Hindi : बेस्ट प्रेगनेंसी टेस्ट किट

Pregnancy ke Lakshan in Hindi

Pregnancy ke Lakshan in Hindi– क्या आपको पता है कि प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है? मतलब प्रेगनेंसी के लक्षण में आज हम आपको बताएंगे कि महिलाओं में ऐसे कौन से लक्षण होते हैं। जिससे यह पता चल सकता है कि प्रेगनेंसी है या नहीं।

यह सिम्टम्स गर्भधान के लगभग 14 दिन बाद ही आमतौर पर दिखाई देने लगते हैं। अगर महिलाओं के शरीर में यह निम्नलिखित सिम्टम्स दिखाई देते हैं तो समझ लेना चाहिए कि गर्भधारण हो चुका है-

प्रेगनेंसी के शुरूआती लक्षण

  1. Pregnancy ke Lakshan in Hindi, इसमें सबसे पहला सिम्टम्स जो है जिससे यह पता चलता है कि प्रेगनेंसी है या नहीं वो है missed period यानी के महावारी का रुक जाना ।
  2. प्रेगनेंसी का दूसरा लक्षण है Nausea & Vomiting मतलब उल्टी आना या जी मतलाना ।
  3. अचानक से शरीर में थकान महसूस होना और चक्कर आना ।
  4.  ब्रेस्ट में परिवर्तन होना , ब्रेस्ट में परिवर्तन होने लगता है अर्थात इनका थोड़ा साइज भी बढ़ने लगता है और भारीपन महसूस होता है ।
  5.  ब्रेस्ट में हल्का सा दर्द बन जाता है और छूने पर भी दर्द महसूस होता है ।
  6. गर्भधारण के बाद महिलाओं के शरीर में हारमोंस की वजह से कई बदलाव देखने को मिलते हैं जिनमें यूरिन की फ्रीक्वेंसी भी बढ़ जाती है अर्थात आप पहले की अपेक्षा अब अधिक बार पेशाब को जाएंगे ।
  7.  आदत में अचानक से चिड़चिड़ापन आ जाता है यह भी एक प्रेगनेंसी का लक्षण है ।

तो यह थे कुछ सामान्य लक्षण जिससे पता चल सकता है कि Pregnancy ke Lakshan या फिर pregnancy है या नहीं.

लेकिन इसको कांफोर्म करने के लिए आपको टेस्ट कराना ही होगा। तो यह थे कुछ Pregnancy ke Lakshan in Hindi, अब आप जान गए होंगे कि प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है?

बेस्ट प्रेगनेंसी टेस्ट किट

Pregnancy ke Lakshan in Hindi, इसके बारे में आप जान चुके हैं लेकिन आपको यह भी मालूम होना चाहिए कि प्रेगनेंसी का पता लगाना, शरीर में दिखाई देने वाले लक्षण से पूरी तरह सिद्ध नहीं होता । प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में कुछ हारमोंस की वजह से यह लक्षण दिखाई देते हैं ।

लेकिन जरूरी नहीं है कि यह लक्षण प्रेगनेंसी के ही हो किसी और वजह से भी शरीर में यह बदलाव आ सकते हैं। किसी और वजह से भी शरीर में बदलाव आ सकते हैं अर्थात प्रेगनेंसी जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं जबकि प्रेगनेंसी नहीं होती।

और प्रेगनेंसी होते हुए भी हो सकता है कि यह लक्षण दिखाई ना दे। इसीलिए जरूरी होता है कि महावारी रुकने के बाद आप प्रेगनेंसी टेस्ट करवाएं ताकि सही पता चल सके।

प्रेगनेंसी टेस्ट किट कैसे यूज़ करते है?

Pregnancy ke Lakshan in Hindi में अब जानते हैं कि प्रेगनेंसी टेस्ट किट के बारे में, यह किट आपको बाजार में किसी भी मेडिकल स्टोर पर आसानी से मिल जाती है। जिसकी मदद से आप अपने घर पर ही प्रेगनेंसी की जांच कर सकते हैं ।

जब आपके पीरियड को मिस हुए लगभग 8 से 10 दिन हो जाए तो आप इस किट की मदद से पता कर पाएंगे कि प्रेगनेंसी है या नहीं ।

Pregnancy test kit को इस्तेमाल करने के लिए आप सुबह का यूरिन लेकर इस पर दिए गए एक गोले में यूरिन की कुछ बूंदें डालें और कम से कम 5 मिनट का इंतजार करें । उसके बाद इस किट में एक या दो पिंक कलर की लाइने आ जाएंगी।

Pregnancy test kit पर इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हुए होते हैं आप उन्हें निर्देशों को फॉलो करते हुए जांच करें। लेकिन याद रहे कि Pregnancy test kit अच्छे ब्रांड की होना चाहिए, और खरीदते समय इसकी एक्सपायरी डेट जरूर देखें।

यह भी पढ़ें: संतुलित आहार (भोजन) किसे कहते हैं?

प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है, ध्यान रखें कि जब भी आप प्रेगनेंसी टेस्ट करें तो उससे पहले आप बहुत ज्यादा पानी, चाय, या कॉफी ना पिए। क्योंकि इससे आपके शरीर में उपस्थित यूरिन का HCG हारमोंस का लेवल नीचे आ जाता है । जिसकी वजह से सही रिजल्ट मिलने में थोड़ी मुश्किल होती है. Pregnancy test kit खोलने के बाद इसको 8 से 10 घंटे के अंदर ही इस्तेमाल कर लेना चाहिए।

Pregnancy test kit result

प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है इसके लिए आपको किट में जब आप इस किट में ड्रोपर से कुछ बूंदें डाल देते हैं उसके 5 मिनट बाद इसका रिजल्ट दिखाई देने लगता है। अगर एक गुलाबी रंग की लाइन आती है तो रिजल्ट नेगेटिव होता है। अर्थात प्रेगनेंसी नहीं है।

अगर दो गुलाबी रंग की लाइन आती है तो रिजल्ट पॉजिटिव होता है; अर्थात प्रेगनेंसी है। अगर कोई लाइन नहीं आ रही है तो या तो Pregnancy test kit खराब हो चुकी है या फिर HCG लेबल गड़बड़ है। ऐसी स्थिति में आपको लगभग 72 घंटे के बाद दोबारा टेस्ट करना चाहिए ।

इसके अलावा घर पर लोग तरह-तरह के टेस्ट आजमाते हैं। जैसे- चीनी से प्रेगनेंसी टेस्ट का पता लगाना, नमक से प्रेगनेंसी का टेस्ट पता लगाना , टूथपेस्ट से प्रेगनेंसी का पता लगाना। यह सारी जानकारी आपको इंटरनेट और यूट्यूब पर भर भर कर मिल जाएगी ।

लेकिन हम आप को यही सलाह देते हैं कि आप (Pregnancy test kit) प्रेगनेंसी टेस्ट किट का इस्तेमाल करें अर्थात इसके बाद आप सीधे जाकर डॉक्टर के पास टेस्ट करवाएं।

वहां पर आपको आपके ब्लड टेस्ट से भी प्रेगनेंसी का पता लग जाएगा और इसके अलावा आप सोनोग्राफी भी करवा सकते हैं और टीवीएस अल्ट्रासाउंड भी करवा सकते हैं जिससे आपकी प्रेग्नेंसी के बारे में पूरी डिटेल आपको पता चल जाएगी ।

Menstrual cycle in Hindi (MC)

Pregnancy ke Lakshan in Hindi में प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है इसमें Menstrual cycle in Hindi का बहुत रोल है तो अब आप महावारी चक्र अर्थात आतर्व चक्र में आप जानेंगे कि आखिर यह माहवारी चक्र होता क्या है, महिलाओं में हर महीने पीरियड क्यों होते हैं इनका क्या कारण है?

मादा स्तनी के अंडाशय में चक्रीय क्रम में परिवर्तन होते हैं । मानव मादा में यह परिवर्तन माह में एक बार दोहराए जाते हैं , अतः इसे महावारी चक्र (Menstrual cycle in Hindi) , आतर्व चक्र कहते हैं।

महावारी चक्र का अंत योनि द्वारा रक्त के रिसाव से होता है । योनि द्वारा इस रक्त के रिसाव को महावारी या ऋतुस्त्राव (menstruation) कहा जाता है । यह 26 से 28 दिनों के अंतराल पर होता रहता है।

Menstrual cycle in hindi
Menstrual cycle in hindi

माहवारी चक्र की दो प्रावस्थाएं होती है-

1: पुटिका प्रावस्था या गुणन प्रावस्था (Proliferative Phase)

Pregnancy ke Lakshan in Hindi, यह चरण पीयूष ग्रंथि की अग्र पाली से स्त्रावित पुटिका प्रेरक हार्मोन (follicle stimulating hormone or FSH) के प्रभाव से होता है । पुटिका प्रेरक हार्मोन के प्रभाव के कारण अंडाशय में एक ग्राफियन पुटिका परिपक्व होने लगती है।  ग्राफियन पुटिका एस्ट्रोजन हार्मोन estrogen hormone का स्त्रावण करती है। पुटिका प्रावस्था 10 से 12 दिन की होती है।

इस प्रावस्था में गर्भाशय , फेलोपियन नलिका तथा योनि की भित्तियों में ऊतकों की वृद्धि होने लगती है । महावारी के समय भित्तियों में हुई टूट-फूट की मरम्मत हो जाती है। एस्ट्रोजन के प्रभाव से गर्भाशय की एंडोमेट्रियम मोटी हो जाती है , गर्भाशय ग्रंथियों में वृद्धि होने लगती है ।

गर्भाशय की भित्ति संकुचन होने लगता है। फेलोपियन नलिकाओं की cilia सक्रिय गति करने लगती है। यह सब गतियां शुक्राणुओं को अंडाणु के पास पहुंचने में सहायता के लिए होती हैं । एस्ट्रोजन का स्त्रावण बढ़ने से FSH का स्त्रावण कम हो जाता है। और अब LH का स्त्रावण धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। Symptoms of pregnancy in Hindi।

अंडोत्सर्ग (Ovulation)

LH हार्मोन के प्रभाव से ग्राफियन पुटिका फट जाती है और अंडाशय से परिपक्व अंडाणु मुक्त हो जाता है ।

2: स्त्रावण प्रावस्था या ल्यूटियल प्रावस्था (Secretory Phase or Lu teal Phase)

यह चरण पीयूष ग्रंथि की अग्र पालि से स्त्रावित LH के प्रभाव में होता है । यह प्रावस्था 12 से 14 दिन तक की होती है ।

ग्राफियन पुटिका अंडाणु मुक्त होने के बाद एक पीले रंग की अंतः स्रावी रचना में बदल जाती है जिसे कार्पस ल्यूटियम (Corpus Luteum) कहते हैं । LH के प्रभाव से कार्पस ल्यूटियम प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन स्रावित करती है ।

Pregnancy ke Lakshan in Hindi, प्रोजेस्ट्रोन के प्रभाव से गर्भाशय की भित्ति संभावित गर्भावस्था के लिए तैयार होने लगती है । गर्भाशय की भित्ति अधिक मोटी हो जाती है ।

इसमें अधिक रक्त वाहिनियाँ विकसित हो जाती हैं । गर्भाशय ग्रंथियां सक्रिय होकर पोषक पदार्थ स्त्रावित करने लगते हैं । गर्भाशय की भित्तियों में कोई हलचल नहीं होती है। यह सब परिवर्तन भ्रूण का रोपण गर्भाशय की भित्ति में करने में सहायक है।

प्रोजेस्ट्रोन के प्रभाव से दूसरी ग्राफियन पुटिकाओं का परिपक्वन नहीं होता है । प्रोजेस्ट्रोन के बढ़ते स्तर के कारण LH का स्त्रावण कम होने लगता है ।

अगर अंडाणु का निषेचन हो जाता है और वह गर्भाशय की भित्ति में रोपित हो जाता है तब कार्पस ल्यूटियम बना रहता है । प्रोजेस्ट्रोन का स्त्रावण होता रहता है, और यह अवस्था गर्भावस्था कहलाती है ।

रक्त का बहना (Flow of blood)

यह अंडाणु का निषेचन नहीं होता तब कार्पस ल्यूटियम नष्ट हो जाती है । जिससे प्रोजेस्ट्रोन तथा एस्ट्रोजन दोनों का ही स्त्रावण एकदम बंद हो जाता है ।

इन दोनों हारमोंस की अनुपस्थिति में गर्भाशय की मोटी एंडोमेट्रियम टूट जाती है और बड़ी हुई रुधिर वाहिनियाँ भी नष्ट हो जाती है । रक्त के साथ ऊतकों के टुकड़े रक्त प्रवाह के साथ योनि मार्ग द्वारा बाहर निकलते हैं । इस रक्त प्रवाह को ही माहवारी (menstruation) कहते हैं । यह प्रवाह सामान्यतः 4 से 6 दिन तक रहता है ।

यह प्रक्रिया प्रति माह दोहराई जाती रहती है । गर्भावस्था में माहवारी नहीं होती है ।

मनुष्य में भ्रूण विकास का अध्ययन निम्नलिखित चरणों में होता है-

मानव भ्रूण विकास, मनुष्य में भ्रूण का विकास माता के गर्भाशय में होता है। मनुष्य के जीवन चक्र में कोई लारवा अवस्था भी नहीं होती है। ऐसे परिवर्तन को प्रत्यक्ष भ्रूण विकास कहते हैं।

निषेचन ( Fertilization)

मनुष्य में निषेचन आंतरिक इंटरनल फर्टिलाइजेशन होता है। निषेचन फैलोपियन बालिकाओं में होता है।निषेचन की प्रक्रिया में अगुणित शुक्राणु( हैप्लॉयड स्पर्म्स) तथाअगुणित अंडाणु ( हैप्लॉयड पोयम) का समेकन होता है।

शुक्राणु, अंडाणु के भीतर प्राणी गोलार्ध की ओर से अंदर जाते हैं और शुक्राणु के अंडाणु में प्रवेश के साथ ही निष्क्रिय अंडाणु सक्रिय हो जाते हैं।निषेचन के फल स्वरुप द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है।

विदलन (Cleavage)

निषेचन के लगभग 24 घंटे के बाद युग्मनज में विदलन शुरू हो जाता है। मनुष्य में विदलन संपूर्णभंजी होता है। विदलन के बाद मोरूला का निर्माण होता है।विदलन के फल स्वरुप कोशिकाओं की संख्याओं में तेजी से वृद्धि होती है लेकिन इनका आकार क्रमश छोटा होता जाता है क्योंकि कोशिका द्रव्य का संश्लेषण नहीं होता है।

ब्लास्टुला भवन (Blastulation)

मोरूला निषेचन के 4 से 6 दिन के बाद फैलोपियन नलिका से होकर गर्भाशय में पहुंच जाता है।गर्भाशय में मोरूला गर्भाशय की ग्रंथियों द्वारा स्रावित रस में डूबा रहता है और उससे पोषण प्राप्त करता रहता है।विदलन विभाजनों के फल स्वरुप धीरे-धीरे मोरूला में कोरक गुहा ब्लास्टोसीलका निर्माण होता है अबभ्रूण को गोरक या ब्लास्टुला (Blastulation) कहते हैं।

स्तनों के ब्लास्तुला को कोरकपुटी या ब्लास्टोसिस्ट भी कहते हैं। ब्लास्टुला में बाहर की ओर कोशिकाओं की एक परत होती है जिसे पोषकोरक या ट्रोफोब्लास्ट या ट्रोफोएक्स्डोडर्म कहते हैं।

ट्रोफोब्लास्टकोशिकाओं से अपरा या प्लेसेंटा बनता है ट्रोफोब्लास्ट की कोशिकाएं गर्भाशय में उपस्थित पोषक रस का अबशोषण करती हैं जिससे ब्लास्टुला की गुहा में एक द्रव्य एकत्र हो जाता है।प्राणी ध्रुव की ओर एकत्र कोशिकाओं का समूह अंतः कोशिका समूह कहलाता है इससे भ्रूण के विभिन्न अंग बनते हैं ।

अंतः कोशिका समूह के ऊपर उपस्थित प्रोब्लास्ट कोशिकाओं की सत्य को रोवर की कोशिकाएं कहते हैं यह कोशिकाएं भ्रूण का कोई भी भाग नहीं बनाती हैं और भ्रूण परिवर्तन के समय नष्ट हो जाती हैं। Symptoms of pregnancy in Hindi।

रोपण( Implantation)

निषेचन के 7वें दिन ब्लास्टो सिस्ट या ब्लास्टुला का गर्भाशयकी भित्तिमें रोपण प्रारंभ हो जाता है। ट्रोफोब्लास्ट की कोशिकाएं ऐसे एंजाइमों का स्त्रावण करती है। जो गर्भाशय की भित्ति का लयन कर देते हैं।

ट्रोफोब्लास्ट कीबाहरी सतह पर रंसाकुरों का निर्माण हो जाता है।जिन्हें पोषकोकरी रंसाकुर या ट्रोफोब्लास्टीए रंसाकुर कहते हैं। ट्रोफोब्लास्टिककी सहायता से रंसाकुरों की सहायता से ब्लास्टो सिस्ट गर्भाशय की भित्ति रोपित हो जाता है और जरायू निर्माण तक इसी के द्वारा पोषण प्राप्त करता है।

गैस्टुला भवन (Gastrulation)

गैस्टुला भवन के समय कोशिकाएं पुनः व्यवस्थित होती हैं कोशिकाओं के स्थानांतरण को संरचना विकास गतियां कहते हैं इन घटनाओं के कारण कोशिकाएं तीन जन्म स्तरों में विन्येसित हो जाती हैं-

तीन जनन स्तरों का निर्माण (Formation of three germ layers)

गैस्टुला भवन के समय अंतः कोशिका समूह से कुछ कोशिकाएं भीतर की ओर अलग हो जाती हैं।यह कोशिकाएं समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होकर ट्रोफोब्लास्ट के भीतर की ओर एक और संपूर्ण पथ का निर्माण कर लेती हैं।

यह अंतः जनन स्तर है इसके बन जाने के बाद बाकी बच्चे अंतः कोशिका समूह को ब्रोड़िए बिंब कहते हैं।इस समूह के पीछे के छोर से कुछ कोशिकाएं अलग होकर मध्य जन्म स्थल का निर्माण करती हैं बाकी बची हुई कोशिकाएंबाहरी जनन स्तर बनाती हैं।इस प्रकार गैस्ट्रूला भवन द्वारा 3 प्राथमिक जनन स्तनों का निर्माण हो जाता है।

मानव भ्रूण विकास के चरण (गैस्टुला से जन्म तक के विकास का वर्णन)

Pregnancy ke Lakshan in Hindi, अब यहाँ मानव भ्रूण विकास के चरण के बारे में जानेंगे मानव में गर्भकाल, निषेचन से 266 दिन अर्थात 9 महीने का होता है। इस गर्भकाल को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

·प्रथम त्रैमाही First trimester

·मध्य या द्वितीय त्रैमाही mid or second trimester

·अंतिम त्रैमाही Last trimester

1. प्रथम त्रैमाही (First trimester)

प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है इसमें गैस्टुला निर्माण के बाद अंग निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है। सबसे पहले तंत्रिका पट तंत्रिका नाल का निर्माण होता है जिससे मस्तिष्क व मेरुरज्जु बनते हैं।तंत्रिका नाल के नीचे नोटोकार्ड का निर्माण होता है।

तंत्र का निर्माण के समय ही हृदय,रुधिर वाहिनीया , आहार नाल तथा दूसरे अंगों का भी निर्माण शुरू हो जाता है। 4 सप्ताह की आयु तक भ्रूण में लगभग सभी मुख्य अंग तंत्र को के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।छठे सप्ताह में जनदों का निर्माण शुरू हो जाता है।

2 माह पूरे होने पर मानव भ्रूण को फीटस (fetus) कहते हैं। इस समय भ्रूण को मानव ब्रॉड के रूप में पहचाना जा सकता है प्रारंभिक 2 माह का समय ब्रोड़िए विकास का सबसे संवेदनशील काल है क्योंकि इसी समय सभी अंगों का विकास होता है तीसरे माह में फीटस हाथ पैर चलाना शुरु कर देता है और बाहरी जनन अंगों का निर्माण शुरू हो जाता है।

2. मध्य या द्वितीय त्रैमाही (Mid or Second trimester)

चौथे महीने में अस्थल कंकाल का निर्माण शुरू हो जाता है और शरीर के ऊपर एक रक्षात्मक आवरण का निर्माण भी आ जाता है।

पांचवे महीने में सिर पर बाल आ जाते हैं और सारा शरीर भी मुलायम बालों से ढका रहता है जिन्हें लेनोवो कहते हैं।

छठे महीने के अंत तक फीट्स की सब रचनाएं और अंग पूरी तरह से बन जाते हैं। इस समय यदि फीटसगर्भाशय से बाहर आ जाए तब यह हाथ पैर चलाता रहे है रोता है सांस लेने की कोशिश करता है लेकिन जीवित नहीं रह पाता।

3. अंतिम त्रैमाही (Last trimester)

अंतिम तिमाही में फीटस के आकार और वजन में तेजी से वृद्धि होती है।इस समय मुख्य था मस्तिष्क का विकास होता है और नई तंत्रिका ओं का तथा उनके आपस में संबंधों का निर्माण होता है इसी काल में फीटसमाता से प्रतिरक्षी प्राप्त करता है जो जीवन से प्रारंभिक काल में शिशु को प्रतिरक्षण देते हैं।

अब तक फीटस में पकड़ने तथा चूसने के प्रति वर्ष विकसित होते हैं जन्म से पहले ही अधिकांशशिशुओं में लैनूगों नष्ट हो जाता है।

और इस प्रकार शिशु 9 महीने में जन्म के लिए पूरी तरह तैयार होता है।

और इस तरह मानव एक नए यानि नवजाति शिशु को जन्म देता है।

परिवार नियोजन या गर्भनिरोधक के उपाय

प्रेगनेंसी के शुरुआती लक्षण कब दिखते है इसके साथ साथ अब जनसँख्या के बारे में भी समझ लेते हैं. अब जनसंख्या को सीमित रखने के लिए विभिन्न प्रकार के Birth control methods परिवार नियोजन के साधनों का प्रयोग किया जाता है । परिवार के आकार को सीमित रखना ही परिवार नियोजन अर्थात Birth control कहलाता है।

Birth control methods में गर्भनिरोधक का सहारा लिया जाता है । गर्भनिरोध के साधनों से निषेचन को रोका जाता है , भ्रूण के गर्भाशय में रोपण को रोका जाता है । अंत में गर्भ समापन का भी प्रयोग किया जा सकता है ।

गर्भनिरोधक उपायों (Birth control methods) को दो भागों में बांट सकते हैं-

(A) पुरुषों के लिए उपाय (Birth control methods for Men)

पुरुषों के द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले गर्भनिरोध के साधन अभी सीमित हैं । अभी तक पुरुषों के लिए केवल निम्न दो साधन ही उपलब्ध हैं –

1: कंडोम का प्रयोग ( Use of Condom) – इसका प्रयोग पुरुषों द्वारा संभोग के समय किया जाता है । इसमें पुरुष अपने शिशन पर कंडोम चढ़ा लेता है जिससे स्खलन के समय वीर्य कंडोम में ही रह जाता है । और शुक्राणु स्त्री के जनन तंत्र में प्रवेश नहीं कर पाते । यह गर्भनिरोध का सबसे अधिक लोकप्रिय तथा संस्था साधन है ।

2: पुरुष नसबंदी या वैसेक्टमी (Vasectomy) –  यह स्थाई उपाय है । इसमें वृषण कोष के पास एक छोटा सा ऑपरेशन करके शुक्रवाहिनी को काटकर बांध दिया जाता है । इस प्रकार शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहती है लेकिन शुक्रवाहिनी के काट दिए जाने से शुक्राणु शरीर से बाहर नहीं निकल पाते । यह भी Birth control का एक अच्छा तरीका है ।

(B) स्त्रियों के लिए उपाय ( Birth control methods for women)

स्त्रियों के लिए Birth control methods अभी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं जिनमें से 4 तरीके निम्नलिखित हैं-

1: अवरोधक उपाय (Barrier Methods) – इस विधि में योनि के भीतर डायफ्राम का प्रयोग किया जाता है । यह ग्रीवा के मुख पर लगा दिया जाता है और साथ ही स्पर्मी साइडल क्रीम का प्रयोग भी किया जाता है , जिससे शुक्राणु गर्भाशय में नहीं पहुंच पाते हैं ।

2: अंतः गर्भाशय युक्ति (Intrauterine Device) – इस विधि में गर्भाशय में कॉपर टी (copper t) या अन्य किसी प्रकार की अन्य युक्ति या डिवाइस रोप दी जाती है । जितने समय तक यह डिवाइस गर्भाशय में रहती है, भ्रूण में गर्भ नहीं ठहरता है ।

3: गर्भनिरोधक गोलियां (Birth control pills) – यह विभिन्न प्रकार की गोलियां हैं । जो प्रतिदिन खाई जाती हैं । Birth control pills में एस्ट्रोजेन तथा प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन की निश्चित मात्रा होती है । रुधिर में एस्ट्रोजेन का निश्चित स्तर बना रहने से पीयूष ग्रंथि द्वारा FSH तथा LH का स्त्रावण नहीं होता है । और ग्राफियन पुटिका परिपक्व नहीं होती है । Birth control pills बाजार में सहेलीमाला डी आदि नामों से उपलब्ध है । 

4: नसबंदी या ट्यूबेक्टमी ( Tubectomy or Tubal Ligation) – यह महिलाओं के लिए परिवार नियोजन Birth control का स्थाई उपाय है । जिसमें ऑपरेशन करके फैलोपियन नलिकाओं को काटकर बांध दिया जाता है । इस प्रकार अण्डाणुओं का निर्माण होता रहता है । महावारी चक्र भी सामान्य रूप से चलता रहता है लेकिन अंडाणु फेलोपियन नलिका से आगे नहीं पहुंच पाते हैं । और गर्भधारण नहीं हो पाता है।

तो यह थे कुछ उपाय जो हमने जाने कि Pregnancy ke Lakshan in Hindi. यह लेख आपको कैसा लगा जरूर बताएं। इसमें अगर आप इसकी और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करिए और हिंदी में पूरी जानकारी पढ़िए.

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