लेखक श्याम सुन्दरदास का संशिप्त परिचय
पूरा नाम | डॉ. श्यामसुंदर दास |
जन्म वर्ष | 1875 ईस्वी |
जन्म स्थान | वाराणसी (काशी), उत्तर प्रदेश, भारत |
पिता का नाम | देवी प्रसाद खन्ना |
शिक्षा संस्थान | क्वींस कॉलेज एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय |
प्रमुख कार्यक्षेत्र | लेखक, संपादक, शिक्षक और शोधकर्ता |
प्रमुख ग्रंथ | पद्मावत, कविरत्नावली, प्रेमघन रचनावली आदि |
निधन | 1945 ईस्वी |
Shyam Sundar ka jivan parichay:- हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अनेक महान विभूतियों ने अपने अमूल्य योगदान से इस भाषा को समृद्ध किया है। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व थे डॉ. श्यामसुंदर दास, जिन्हें हिंदी के आदिकालीन विद्वानों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वे केवल एक लेखक ही नहीं, बल्कि एक शिक्षाविद्, संपादक, अन्वेषक और राष्ट्रप्रेमी भी थे। उनका जीवन सादगी, सेवा और समर्पण की मिसाल है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. श्यामसुंदर दास का जन्म 1875 ईस्वी में वाराणसी (काशी) के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद खन्ना था। श्यामसुंदर दास बचपन से ही अत्यंत मेधावी, अध्ययनशील और गंभीर स्वभाव के थे। उन्हें पुस्तकों से विशेष लगाव था, और वे शिक्षा को जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य मानते थे।
उन्होंने काशी के प्रसिद्ध क्वींस कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। वहीं पर उन्हें हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य में रुचि जागृत हुई। इसके पश्चात उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से भी अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की और एक विद्वान के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की।
कर्मभूमि और योगदान
श्यामसुंदर दास का कार्यक्षेत्र मुख्यतः शिक्षा और साहित्य रहा। वे नागरी प्रचारिणी सभा से जुड़ गए, जो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए स्थापित की गई थी। वहाँ उन्होंने न केवल हिंदी साहित्य का संकलन किया, बल्कि अनुवाद, संपादन और शोध के क्षेत्र में भी अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किए।
नागरी प्रचारिणी सभा और कोश निर्माण
डॉ. श्यामसुंदर दास ने नागरी प्रचारिणी सभा में रहकर ‘हिंदी शब्दसागर’ जैसे विशाल और महत्वपूर्ण कोश का संपादन किया। यह कार्य आसान नहीं था, क्योंकि हिंदी भाषा के विभिन्न प्राचीन और नवीन रूपों को समझकर उन्हें क्रमबद्ध करना एक दुष्कर कार्य था। उन्होंने कई वर्षों तक अथक परिश्रम करके यह कार्य पूर्ण किया, जो आज भी हिंदी भाषा के विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए एक अमूल्य निधि है।
साहित्यिक योगदान
डॉ. दास ने अनेक ग्रंथों का लेखन और संपादन किया। उन्होंने ‘कविरत्नावली’, ‘पद्मावत’, ‘प्रेमघन रचनावली’ आदि ग्रंथों का सफल संपादन किया। वे एक शोधपरक दृष्टिकोण के साथ साहित्य को देखते थे। वे केवल भावुक साहित्यकार नहीं थे, बल्कि तथ्यात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन में विश्वास रखते थे।
उनकी भाषा-शैली
उनकी लेखनी में सरलता, स्पष्टता और गंभीरता तीनों का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने उस दौर में हिंदी गद्य को एक वैज्ञानिक और शिक्षाप्रद स्वरूप देने का कार्य किया, जब हिंदी साहित्य केवल भावनाओं तक सीमित माना जाता था।
शिक्षण कार्य
डॉ. श्यामसुंदर दास केवल लेखक ही नहीं, बल्कि एक श्रेष्ठ शिक्षक भी थे। वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे और हजारों विद्यार्थियों को ज्ञान के दीप से आलोकित किया। उन्होंने विद्यार्थियों को केवल विषय नहीं सिखाए, बल्कि सच्चे जीवन के मूल्य भी सिखाए। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि छात्र उन्हें केवल शिक्षक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत मानते थे।
राष्ट्रभक्ति और समाजसेवा
उनका जीवन राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित था। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया और हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए सतत प्रयास किए। उनका मानना था कि जब तक भारतीय जनमानस की भाषा में शिक्षा नहीं दी जाएगी, तब तक देश की वास्तविक उन्नति नहीं हो सकती।
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उनके अद्भुत योगदान के लिए उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हुए। हिंदी साहित्य में उनके कार्यों को देखकर उन्हें ‘हिंदी कोशकार’, ‘महान भाषाविद्’, और ‘आधुनिक युग का पथप्रदर्शक’ कहा गया।
निधन
डॉ. श्यामसुंदर दास का निधन 1945 ईस्वी में हुआ, लेकिन उनका कार्य और उनके विचार आज भी जीवित हैं। वे चले गए, पर हिंदी भाषा को जो ठोस नींव वे दे गए, वह सदैव स्मरणीय रहेगी।
निष्कर्ष
डॉ. श्यामसुंदर दास का जीवन एक सच्चे शिक्षक, निष्कलंक सेवक और महान साहित्यकार का जीवन था। उन्होंने न केवल साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक दिशा भी निर्धारित की। उनका नाम हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।