सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
Suryakant Tripathi Nirala Jivan Parichay: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। वे सिर्फ एक कवि ही नहीं, बल्कि उपन्यासकार, निबंधकार और कहानीकार भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए समाज को जागरूक करने का काम किया था। उनकी कविताएँ स्वतंत्रता, समाज सुधार और मानवीय भावनाओं से भरी होती थीं।
नाम | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
बचपन का नाम | सूरज कुमार |
पिता का नाम | पंडित राम सहाय |
जन्म | 1899 |
मृत्यू | 1961 |
काव्य भाषा | शुद्ध खड़ी बोली |
प्रमुख रचनाएँ | अनामिका, अप्सरा, अलका, भारती, अनुपमा आदि |
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का प्रारंभिक जीवन
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1899 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। ये रविवार के दिन पैदा हुए थे। इसलिए बचपन में इनका नाम सूरज कुमार था। क्योंकि रवि, सूरज को कहते हैं और इसीलिए लोग इनको भी सूरज कुमार कहने लगे।
सूर्यकांत त्रिपाठी जी के पिता का नाम पंडित राम सहाय था जो सिपाही की नौकरी करते थे। उनकी माता का नाम रुक्मणी था, जब निराला जी लगभग 3 साल की आयु के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी और उसके बाद उनके पिता ने उनकी देखभाल की। थी। उनका बचपन काफी संघर्षों से भरा था।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की शिक्षा
इनकी शुरूआती शिक्षा महिषादल हाई स्कूल में हुई लेकिन उसमे उनका मन नहीं लगा। उसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई बंगाली भाषा में की, लेकिन बाद में हिंदी साहित्य की ओर झुकाव हुआ। और उन्होंने घर पर ही संस्कृत ,अंग्रेजी साहित्य और कई विषय पर गहरा अध्ययन किया था। इन्हें “रामचरित मानस” शुरू से ही पसंद थी। हालाँकि इनका मन पढाई लिखाई के अलावा खेलने कूदने और घूमने में ज्यादा लगता था। लेकिन साहित्य के प्रति उनकी रुचि बचपन से ही थी, और उन्होंने खुद को हिंदी साहित्य में खुद को उतार लिया।
साहित्यिक जीवन और योगदान
हिंदी साहित्य के चार छायावाद महाकवियों में से एक थे। वैसे तो ये मुख्य रूप से कवि थे पर उन्होंने कविता के अलावा उपन्यास, निबंध और कहानियाँ भी लिखीं। उनकी लेखनी में समाज की सच्चाइयों को उजागर करने की ताकत थी। वे पुराने रीति-रिवाजों को तोड़कर कुछ नया करने में विश्वास रखते थे।
इनकी 15 वर्ष की आयु में मनोरमा देवी से शादी हो गयी जिनका कुछ वर्षों के बाद ही स्वर्गवास हो गया। इनको बचपन से ही दुखों का सामना करना पड़ा था। बचपन में इनकी माता का देहान्त और जब यह 20 साल के थे तो इनकी पत्नी का देहांत फिर एक महामारी के दौरान इनके पिता, चाचा ,भाई, भाभी की भी मृत्यु हो गई थी।
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इन्होने इन दुखों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। पहले इन्होने बांग्ला भाषा में कवितायेँ लिखी फिर हिंदी का ज्ञान प्राप्त करने के बाद ये हिंदी में लिखने लगे। उन्होंने पहली अपनी नियुक्ति महिषादल राज्य में की थी उसके पश्चात उन्होंने 1918 से 1922 तक यहां पर नौकरी की।
इसके बाद ये संपादन, अनुवाद कार्य और स्वतंत्र लेखन में प्रवृत्त हो गए। फिर उन्होंने लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में मासिक पत्रिका सुधा 1934 के मध्य के साथ संबंध में रहे थे। कुछ समय उन्होंने लखनऊ में ही बिताया। उनकी सबसे पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र 1920 जून में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद इनकी सबसे पहली कविता संग्रह 1923 अनामिका प्रकाशित हुई थी।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएँ
निराला जी के मुख्य चार काव्य संग्रह
क्र.स. | काव्य संग्रह | वर्ष | विविरण |
1 | परिमल | 1930 | उनकी प्रसिद्ध कविताओं का संकलन |
2 | अनामिका | 1923 | छायावादी कविता का उत्कृष्ट उदाहरण |
3 | गीतिका | 1936 | सुंदर और भावनात्मक कविताओं का संग्रह |
4 | तुलसीदास | 1939 | तुलसीदास के जीवन और कृतित्व पर आधारित रचना |
निराला जी के प्रमुख 4 उपन्यास
क्र.स. | उपन्यास | वर्ष | विविरण |
1 | अप्सरा | 1931 | समाज की सच्चाई पर आधारित कहानी |
2 | अलका | 1933 | नारी सशक्तिकरण से जुड़ा उपन्यास |
3 | प्रभावती | 1936 | सामाजिक बंधनों को तोड़ने की प्रेरणा देने वाला उपन्यास |
4 | निरुपमा | 1935 | प्रेम और समाज के द्वंद्व को दर्शाने वाली कहानी |
निबंध और आलोचना
- प्रबंध पद्म – निबंधों का संग्रह
- रवींद्र कविता काण – रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं पर विचार
- भारती – साहित्य से जुड़ी आलोचनात्मक रचनाएँ
उनकी लेखन शैली की विशेषताएँ
- छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में से एक
- हिंदी साहित्य में मुक्त छंद (बिना तुकबंदी की कविताएँ) को लोकप्रिय बनाया
- समाज में बदलाव लाने के लिए अपनी रचनाओं का उपयोग किया
- पारंपरिक सोच को चुनौती देकर नए विचारों को अपनाया
निधन
15 अक्टूबर 1961 को यह महान साहित्यकार दुनिया को अलविदा कह गये। उनका योगदान अमर है, और उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों को प्रेरित करती हैं।
निष्कर्ष
Suryakant Tripathi Nirala Jivan Parichay, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य की एक धरोहर हैं। उनकी रचनाएँ आज भी हमें सोचने, समझने और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती हैं। वे एक सच्चे समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने शब्दों से समाज को नया दृष्टिकोण देने की कोशिश की। इनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है कि इन्होने अपने जीवन में इतने दुखों के साथ अपना संघर्ष नहीं छोड़ा। जीवन में कितनी भी कठिनाईयां क्यों ना आ जाएँ एक होनहार व्यक्ति कभी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ता है। इसीलिए हमेशा हिंदी साहित्य के इतिहास में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का नाम जीवित रहेगा।