Bharat me Dharm aur Rajniti par Nibandh : धर्म और राजनीति निबन्ध

Bharat me Dharm aur Rajniti par Nibandh

परिचय:- Bharat me Dharm aur Rajniti par Nibandh, भारतीय संस्कृति में धर्म और राजनीति दोनों का अपना-अपना महत्व रहा है। धर्म का संबंध आस्था, सदाचार और नैतिक मूल्यों से है, जबकि राजनीति का संबंध शासन, व्यवस्था और समाज के संचालन से है। प्राचीन समय से ही धर्म और राजनीति किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से जुड़े रहे हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इन दोनों का मेल समाज के लिए उचित है या इनका अलग-अलग रहना ही बेहतर है।

भारत में धर्म और राजनीति

भारत एक बहुधर्मी देश है। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि अनेक धर्मों के अनुयायी रहते हैं। इतनी विविधता के बावजूद भारतीय समाज ने सदियों तक सह-अस्तित्व की परंपरा निभाई है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय धर्म और राजनीति का मेल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा जैसे धार्मिक मूल्यों को राजनीति में स्थान देकर पूरे देश को एकजुट किया। आज भी भारत में राजनीति पर धर्म का गहरा प्रभाव है, लेकिन कभी-कभी इसका दुरुपयोग भी देखने को मिलता है।

प्राचीन भारत में धर्म और राजनीति

प्राचीन भारत में राजाओं को धर्म का पालन करने वाला माना जाता था। राज्य को ‘धर्म राज्य’ कहा जाता था। राजा धर्म के अनुसार ही निर्णय लेता था और प्रजा से भी धर्माचरण की अपेक्षा की जाती थी। महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में धर्म और राजनीति का गहरा संबंध दिखाई देता है। रामराज्य का आदर्श इसी का प्रतीक है जहाँ राजनीति धर्म के मार्गदर्शन में चलती थी। उस समय के राजा अपनी प्रजा के लिए जो भी कार्य या नियम बनाते थे वो धर्म के अंतर्गत ही होते थे।

मध्यकालीन स्थिति

मध्यकाल में धर्म और राजनीति के मेल-जोल ने नया रूप धारण किया। शासकों ने कभी धर्म को शासन का आधार बनाया तो कभी राजनीति के लिए धर्म का सहारा लिया। इस काल में कई बार धार्मिक संघर्ष भी देखने को मिले। लेकिन इसी समय भक्ति आंदोलन और सूफी संतों ने समाज को यह संदेश दिया कि धर्म को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।

आधुनिक काल में धर्म और राजनीति

स्वतंत्रता संग्राम के समय धर्म और राजनीति का विशेष महत्व रहा। महात्मा गांधी ने राजनीति में नैतिक मूल्यों और धार्मिक आदर्शों को स्थान दिया। उनके अनुसार राजनीति को धर्म के बिना चलाना अंधकार में चलने जैसा है। उन्होंने सत्य और अहिंसा जैसे धार्मिक मूल्यों को स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बनाया। दूसरी ओर, कई नेताओं ने यह भी माना कि राजनीति को धर्म से अलग रहना चाहिए ताकि समाज में विभाजन न हो।

धर्म और राजनीति में संबंध

धर्म और राजनीति का संबंध बहुत गहरा और संवेदनशील है। धर्म व्यक्ति को आचार, व्यवहार और नैतिकता सिखाता है, जबकि राजनीति समाज की व्यवस्था को नियंत्रित करती है। जब धर्म राजनीति में प्रवेश करता है तो वह उसे नैतिकता और आदर्शों की राह दिखाता है। लेकिन जब राजनीति धर्म का उपयोग स्वार्थ साधने के लिए करती है, तब समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए धर्म और राजनीति का संबंध तभी लाभकारी है जब यह मानवीय मूल्यों और सदाचार पर आधारित हो।

धर्म और राजनीति का वर्तमान स्वरूप

आज के समय में धर्म और राजनीति का संबंध और भी जटिल हो गया है। राजनीति में अक्सर धर्म का प्रयोग वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जाता है। चुनावों में धार्मिक भावनाओं को भड़काकर लाभ उठाने की कोशिश की जाती है। इससे समाज में साम्प्रदायिकता और वैमनस्य बढ़ता है। दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि धर्म राजनीति को नैतिक दिशा देता है और नेताओं को आदर्श आचरण की प्रेरणा देता है।

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यदि धर्म का अर्थ मानवता, सदाचार और नैतिकता से लिया जाए तो राजनीति में धर्म का समावेश लाभकारी हो सकता है। यह नेताओं को भ्रष्टाचार और स्वार्थ से दूर रखकर जनहित में कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा। धर्म से प्रेरणा लेने वाली राजनीति न्यायप्रिय, सहिष्णु और मानवीय हो सकती है।

लेकिन जब धर्म को संकीर्ण दृष्टि से देखा जाता है और केवल किसी एक जाति, वर्ग या संप्रदाय तक सीमित कर दिया जाता है, तब राजनीति में उसका प्रयोग घातक साबित होता है। इससे समाज में विभाजन, दंगे और अशांति फैलती है। ऐसी राजनीति देश की एकता और प्रगति में बाधा डालती है।

धर्म और राजनीति का आदर्श स्वरूप

Bharat me Dharm aur Rajniti par Nibandh में इसका आदर्श स्वरुप या आदर्श स्थिति यह होगी कि राजनीति में धर्म का अर्थ नैतिकता और सदाचार से लिया जाए, न कि किसी विशेष संप्रदाय से। नेताओं को धार्मिक मूल्यों से प्रेरणा तो लेनी चाहिए, लेकिन धर्म का उपयोग किसी भी प्रकार की संकीर्णता या भेदभाव के लिए नहीं होना चाहिए। राजनीति को धर्म के व्यापक और मानवीय स्वरूप को अपनाना चाहिए।

उपसंहार

धर्म और राजनीति का संबंध अत्यंत संवेदनशील है। यदि यह संबंध सही दिशा में हो तो राजनीति में नैतिकता और आदर्श स्थापित हो सकते हैं। लेकिन यदि धर्म का दुरुपयोग किया जाए तो राजनीति समाज को बाँटने और कमजोर करने का माध्यम बन सकती है। इसलिए यह आवश्यक है कि धर्म और राजनीति का मेल केवल नैतिकता और मानवता के स्तर पर हो, ताकि समाज में शांति, सद्भाव और प्रगति बनी रहे।

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