Jahangir ka jivan parichay
जहाँगीर का पूरा नाम नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर था, यह मुग़लिया सल्तनत के चौथे मुग़ल बादशाह थे. जहाँगीर का जन्म 31 अगस्त 1569 ई. में फ़तेह पुर सीकरी में हुआ था. जहाँगीर के पिता का नाम अकबर था जो मुग़ल सल्तनत के बहुत ही मशहूर बादशाह हुए हैं.
अकबर अपने पुत्र जहाँगीर से बहुत प्यार करता था. अकबर ने इनका नाम सलीम रखा था. और यह सलीम को प्यार से शेखू भी कहा करते थे. अकबर बादशाह अपने ज़माने के एक मशहूर वुजुर्ग शेख़ सलीम चिस्ती के मुरीद थे.
उन्होंने उन वुजुर्ग की दरगाह पर बेटे के लिए दुआ मांगी थी. और जब अकबर बादशाह के यहाँ बेटे ने जन्म लिया तो चारो तरफ मुगलिया सल्तनत में ख़ुशी का ठिकाना न रहा. अकबर बादशाह ने उन वुजुर्ग के नाम पर ही अपने बेटे का नाम सलीम रखा था.
जहाँगीर की पत्नियाँ
जहाँगीर की भी कई बीबीयाँ थीं जिनके नाम- मभावती वाई (शाह बेगम), जगत गोरसाईं, साहिब जमाल, मलिका जहाँ, नुरुन्निसा बेगम, खास महल, कर्मसी, सालिहा बनो बेगम और इनकी सबसे प्यारी बीबी जिनका नाम था नूर जहाँ.
वैसे तो नूर जहाँ एक विधवा औरत थी लेकिन जब जहाँगीर ने इनको देखा तो पहली ही नजर में इनसे इश्क हो गया और फिर शादी भी कर ली.
एक बार की बात है जहाँगीर बादशाह अपने गार्डन में घूम रहे थे और उनके दोनों हाथों में एक एक कबूतर था; अचानक बादशाह की नज़र एक खूबसूरत फूल पर पड़ी वो इस फूल को तोडना चाहते थे लेकिन दोनों हाथों में कबूतर होने की बजह से वो फूल को तोड़ नहीं पा रहे थे. इतने में इन्हें वही पर नूर जहाँ आती हुई दिखाई दीं.
बादशाह ने अपने दोनों कबूतर नूर जहाँ को पकड़ने के लिए दे दिए कहा कि ज़रा इन्हें पकड़ना मै यह खुबसूरत फूल तोडूंगा, नूर जहाँ ने दोनों कबूतर पकड़ लिए जैसे ही बादशाह फूल तोड़ कर कबूतर लेने के लिए मुड़े तो देखा के नूर जहाँ के हाथ में सिर्फ एक ही कबूतर था.
उन्होंने पुछा कि एक कबूतर कहाँ गया तो नूर जहाँ ने कहा कि उड़ गया. बादशाह ने कहा कि कैसे उड़ गया? नूर जहाँ ने दूसरा कबूतर हाथ से छोड़ते हुए कहा कि ऐसे उड़ गया और इसी तरह उसने दोनों कबूतर आजाद कर दिए.
जहाँगीर वैसे तो बहुत ही नेक थे लेकिन यह अपने भाईयों की तरह यह भी शराब और अफीम जैसी चीजों का सेवन करते थे. इनके भाई मुराद और दानियाल की मौत सिर्फ नशा करने की वजह से ही इनके पिता अकबर के सामने ही हो गयी थी.
इन्होने और मुग़ल बादशाहों की तरह ज्यादा युद्ध तो नहीं किये थे लेकिन इनके बेटे से इनकी कभी नहीं बनी और समय समय पर इनका पुत्र इनसे बगावत कने लगा था लेकिन आखिर में तंग आकर इन्होने अपने बेटे को अँधा कर दिया था.
जहाँगीर हिस्ट्री इन हिंदी
जहाँगीर ने नवम्बर 1605 से लेकर अक्टूबर 1627 ई. तक लगभग 22 साल तक भारत में राज किया था. उस समय लोगो को सजा देने के लिए उनके हाथ, नाक, कान आदि काटने का रिवाज़ था लेकिन सन 1605 में ही इन्होने कई जरूरी कानूनों में सुधार किये जैसे नाक, कान और हाथ काटने की सज़ा को ख़त्म कर दिया और नशे पर भी काफ़ी रोक लगायीं और कुछ ख़ास दिनों में जीव हत्या भी बंद कर दी गयीं.
इनकी जीवनी पर भी एक किताब लिखी है जसका नाम तुजुक-ए-जहाँगीरी है. बादशाह गर्मी के मौसम के अक्सर अपनी बीबी के साथ कश्मीर घूमने जाया करता था. क्यूंकि कश्मीर का मौसम बहुत सुहाना रहता है.
जहाँगीर अपनी पत्नी नूर जहाँ से बहुत प्रेम करते थे. एक वक़्त ऐसा भी आया कि जहाँगीर ने नूरजहाँ को बादशाहत के कई काम सौंप दिए. धीरे धीरे नूरजहाँ अपने काम को और आगे लेकर गयी. जरूरी कागजात पर मोहर लगाना और कई अहम काम पर फैसले लेने नूरजहाँ के हाथ में आ गया.
एक दिन ऐसा भी आया कि जहाँगीर सिर्फ नाम का बादशाह रह गया. पूरी बादशाहत अब नूरजहाँ के हाथ में थी. कई वर्षों तक नूरजहाँ ने पूरे राजपाठ को संभाला और एक बादशाह की तरह काम को अंजाम दिया. नूरजहाँ बहुत ही होशियार औरत थी. अपने ज़माने की मुद्रा के सिक्को पर नूरजहाँ की तस्वीर आने लगी थी.
जहाँगीर बादशाह को अच्छी से अच्छी शराब मिल जाये और खाने के लिए बेहतरीन खाना; उसके लिए यही काफी था. इसलिए उसे इस बात से फर्क भी नहीं पड़ता था कि राजपाठ मै देखूं या नूरजहाँ. वह बस खाने पीने में मस्त रहता था.
जहाँगीर का इंतकाल
जहाँगीर को नशा करने की बुरी आदत की वजह से वो बीमार रहने लगा था. उन्हे इसी बुरी आदतों की वजह से दमा की बीमारी भी हो गयी थी.
एक दिन 28 अक्टूबर सन 1627 ई. को जब जहाँगीर कश्मीर से वापिस आ रहे थे तो अचानक लाहौर के पास शाहदरा में उनका 58 साल की उम्र में देहांत हो गया.