Raskhan ka jivan parichay : रसखान का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

Raskhan ka jivan parichay

रसखान का असली नाम सैय्यद इब्राहीम था और वे एक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे. उनके जीवन और कृतित्व ने हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा दी. ये सगुण काव्य धारा की कृष्ण-भक्ति शाखा के महान कवि थे. इनका जन्म दिल्ली में हुआ था, लोग इनको दिल्ली का पठान कहते थे.

लेकिन कुछ विद्दान का कहना है कि ये उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई के रहने वाले थे. हालाँकि इस बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं है. वैसे रसखान किसी बादशाह के घराने के लगते थे. ऐसा “प्रेमवाटिका” की अधोलिखित पक्तियों से साबित होता है.

इनका जन्म कब हुआ था इसके बारे में लोगों के बीच में मतभेद है. कुछ लोग मानते हैं कि ये 1533 ई. में पैदा हुए थे. लेकिन मिश्रबन्धु ने इनका जन्म 1548 ई. माना है.

रसखान का जीवन परिचय Overview

नामरसखान
वास्तविक नामसैय्यद इब्राहीम
जन्म स्थान दिल्ली
गुरु गुसाई बिट्ठल नाथ
रस भक्ति, श्रृंगार
मृत्यू 1628 ई.
भाषा ब्रज
शैली मुक्तक, सरल व परमार्जित
अन्य जन्म स्थानपिहानी, हरदोई (U.P.)
प्रमुख रचनाएँ सुजान रसखान, प्रेमबाटिका, बाल लीला, अष्टयाम आदि.

प्रारंभिक जीवन

रसखान 16वीं शताब्दी में पैदा हुए थे जो एक सम्पन्न और शिक्षित परिवार से थे, जिससे उन्हें शिक्षा और संस्कृति का अच्छा माहौल मिला. उन्होंने फारसी और अरबी भाषा में शिक्षा प्राप्त की, जो उस समय की प्रमुख भाषाएँ थीं. उनका पालन-पोषण इस्लामी परंपराओं के अनुसार हुआ था, और वे युवावस्था में अपने परिवार के व्यवसाय और सामाजिक कार्यों में भी सम्मिलित रहे थे.

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रसखान को शुरुआत से ही साहित्य, कला और संगीत में गहरी रुचि थी. वे फारसी कविता और सूफी संगीत के प्रेमी थे, और इनके माध्यम से आध्यात्मिकता की ओर झुकाव रखते थे. उनके जीवन के प्रारंभिक वर्षों में वे फारसी और उर्दू साहित्य में अपना समय बिताते थे. ऐसा माना जाता है कि उनकी मुलाकात किसी संत या साधु से हुई, जिसने उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव ला दिया.

कृष्ण भक्ति की ओर झुकाव

रसखान के जीवन में सबसे बड़ा परिवर्तन तब आया जब वे भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से प्रभावित हुए. इस परिवर्तन की वजह के बारे में अलग-अलग मत हैं. एक कहानी के अनुसार, रसखान को किसी हिंदू संत ने भगवान कृष्ण की लीलाओं के बारे में बताया, जिससे वे गहराई से प्रभावित हुए. कुछ विद्वानों का मानना है कि रसखान ने अपने जीवन के किसी कठिन समय में श्रीकृष्ण की भक्ति को अपनाया. इस भक्ति ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी और वे पूर्णतः भगवान कृष्ण के प्रेम और भक्ति में समर्पित हो गए.

वृंदावन में समय

भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति के कारण रसखान ने अपना अधिकांश समय वृंदावन में बिताया. वृंदावन, जो भगवान कृष्ण की लीलाओं का प्रमुख स्थान है, रसखान के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया. वे वहां के वातावरण, गोपियों की भक्ति, और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी कविताओं में इन सबका सजीव वर्णन किया.

साहित्यिक योगदान

रसखान हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के प्रमुख कवि थे. उनकी कविताओं में ब्रज भाषा की मिठास और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. रसखान की रचनाएँ भक्ति, प्रेम और सौंदर्य का अद्वितीय उदाहरण हैं. उनकी 4 पुस्तकें प्रमुख हैं जो निम्नलिखित हैं:-

प्रेमवाटिका:- इसके 25 दोहों में प्रेम के स्वरुप का काव्यात्मक वर्णन है. प्रेम और भक्ति का संगम इस कृति में बखूबी झलकता है. इसमें रसखान ने प्रेम के गहन और सरल रूप का वर्णन किया है.

सुजान रसखान:- इस रचना में उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, गोपियों के प्रति उनके प्रेम, और ब्रज भूमि की महिमा का वर्णन किया है.

बाल लीला:- रसखान की रचनाओं में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का बहुत ही सुंदर और भावनात्मक वर्णन मिलता है. उन्होंने अपनी कविताओं में बाल कृष्ण की बालसुलभ चपलता, उनकी शरारतें, और गोपियों के प्रति उनके प्रेम को बहुत ही सजीव रूप में प्रस्तुत किया है.

अष्टयाम:- अष्टयाम का अर्थ है श्रीकृष्ण की दिनभर की आठ लीलाएँ. रसखान की कविताओं में अष्टयाम लीलाओं का भी विस्तृत वर्णन मिलता है. वे सुबह से लेकर रात तक श्रीकृष्ण के दैनिक कार्यों और उनकी लीलाओं को बड़े ही प्रेमपूर्ण ढंग से वर्णित करते हैं.

रसखान की भाषा शैली

रसखान की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता उनकी भाषा और शैली है. उन्होंने ब्रज भाषा का प्रयोग किया, जो सरल और मधुर होने के साथ-साथ भावनाओं को व्यक्त करने में अत्यंत प्रभावी है. उनकी कविताएँ अलंकार, उपमा, और अनुप्रास जैसे काव्य तत्वों से भरपूर हैं.

रसखान की कविताओं में ब्रजभूमि का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है. उन्होंने अपनी कविताओं में ब्रजभूमि की प्राकृतिक सुंदरता, यमुना नदी, और वहाँ के लोगों के सरल जीवन का वर्णन किया है.

रसखान की मृत्यु

रसखान का जीवन वृंदावन में ही समाप्त हुआ. उनकी मृत्यु 1628 ई. में हुई थी उसके बाद उनकी समाधि वृंदावन में बनाई गई, जो आज भी कृष्ण भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है. उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य में अमूल्य धरोहर के रूप में सजीव हैं.

निष्कर्ष

रसखान ने अपने जीवन और रचनाओं के माध्यम से यह सिद्ध किया कि प्रेम और भक्ति की कोई सीमा नहीं होती. उनकी कविताएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी प्रेरणादायक हैं. उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्चा प्रेम और भक्ति हर बाधा को पार कर सकते हैं. रसखान का साहित्य और उनकी भक्ति भावनाएँ हमें सदा प्रेरित करती रहेंगी.

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