Bihari Lal ka Jivan Parichay : बिहारी लाल का जीवन परिचय

बिहारी लाल का संक्षिप्त जीवन परिचय

नामबिहारी लाल
पिता का नामपं. केशवराय चौबे
जन्म स्थानबसुआ गोविंदपुर (ग्वालियर)
जन्म1595
मृत्यू1663
रचनाबिहारी सतसई
भाषाप्रौढ़ और परमार्जित ब्रज
शैलीमुस्तक

Bihari Lal ka Jivan Parichay

बिहारी लाल हिंदी साहित्य के एक महान कवि थे, जिनका नाम भारतीय काव्य जगत में हमेशा याद किया जाएगा। उनका योगदान मुख्य रूप से भक्ति काव्य और प्रेम भक्ति से जुड़ा हुआ है। वे विशेष रूप से अपनी प्रसिद्ध काव्य रचना “बिहारी सतसई” के लिए जाने जाते हैं जिसमे 719 दोहे हैं। उनका काव्य जीवन, भक्ति भावना और साहित्यिक दृष्टिकोण आज भी विद्यार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

जन्म और प्रारंभिक जीवन 

बिहारी लाल का जन्म सन् 1595 में उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव बसुआ गोविंदपुर में हुआ था। इनका बचपन बुंदेलखंड में बीता था, लेकिन युवावस्था में यह अपनी ससुराल मथुरा में जाकर रहने लगे। इनके पिता का नाम पं. केशवराय चौबे था।

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उनका परिवार एक उच्च जाति के राजपूत परिवार से था। माना जाता है कि उनका पालन-पोषण धार्मिक वातावरण में हुआ था, जहाँ बचपन से ही उन्होंने संस्कृत और धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन किया। यही कारण था कि वे बहुत कम उम्र में ही काव्य रचनाओं में रुचि लेने लगे।

शिक्षा और साहित्यिक विकास 

बिहारी लाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुलों में प्राप्त की थी, जहां उन्हें संस्कृत और प्राकृत जैसी भाषाओं का ज्ञान हुआ। इसके साथ ही, उन्होंने भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। वे विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे और कृष्ण भक्ति उनके काव्य का मुख्य विषय था।

बिहारी लाल का काव्य जीवन धार्मिक, सांस्कृतिक और भक्ति से प्रभावित था। वे हिंदू धर्म के सिद्धांतों को अपने काव्य के माध्यम से व्यक्त करते थे। उनका साहित्यिक विकास विशेष रूप से भक्ति साहित्य से हुआ था।

प्रमुख रचनाएँ और काव्य शैली 

बिहारी लाल का सबसे प्रसिद्ध काव्य संग्रह “बिहारी सतसई” है। इसमें उन्होंने 719 सुभाषितों का संग्रह किया है, जो भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और प्रेम को व्यक्त करते हैं। इन सुभाषितों में बिहारी लाल ने जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे प्रेम, भक्ति, मानवता, और सत्य की चर्चा की है। इन सुभाषितों का शास्त्र और साहित्य से गहरा संबंध था और यह भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गए।

बिहारी लाल की कविता में सरलता, शुद्धता और गहराई थी। उनका काव्य शैली बहुत ही सहज था, जिसे आम लोग आसानी से समझ सकते थे। उन्होंने संस्कृत और हिंदी का सुंदर मिश्रण किया, जिससे उनकी रचनाएँ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सकें। उनके काव्य में भक्ति, प्रेम और उपदेश का सुंदर संगम देखने को मिलता है।

काव्य का प्रभाव और महत्व

राजा जयसिंह इनका बड़ा सम्मान करते थे। कहा जाता है कि इनके हर दोहे पर राजा इनको एक सोने की मुद्रा देते थे। एक बार की बात है राजा जयसिंह अपनी पत्नी के साथ इनता प्रेम में लिप्त हो गए थे कि अपने राज काज का परित्याग कर चुके थे। यह दशा देखकर बिहारी लाल ने इनको ऐसा दोहा लिखकर भेजा कि राजा जयसिंह फिर से अपने राजपाठ की तरफ ध्यान देने लगे।

बिहारी लाल का काव्य न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को भी उठाया। उनकी कविताएँ आज भी लोगों को जीवन जीने की सही राह दिखाती हैं। वे हमेशा प्रेम, भक्ति और सत्य की ओर लोगों को प्रेरित करते थे।

1663 ई. में एक महान कवि बिहारी लाल का स्वर्गवास हो गया। उनकी रचनाओं में कृष्ण भक्ति का गहरा प्रभाव था, और यही कारण था कि उनकी कविताएँ एक विशेष स्थान पर पहुँच गईं। उन्होंने यह बताया कि भक्ति, प्रेम और समर्पण से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। उनका काव्य आज भी समाज में आत्मिक शांति और प्रेम की भावना को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष 

बिहारी लाल का जीवन और उनका काव्य आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भक्ति और प्रेम का महत्व बताया। उनका काव्य जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और श्री कृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा को व्यक्त करता है। उनकी रचनाएँ न केवल हिंदी साहित्य में एक अमूल्य धरोहर हैं, बल्कि वे हमें जीवन जीने की एक नई दिशा भी दिखाती हैं।

बिहारी लाल का साहित्य आज भी पढ़ा जाता है और उनकी रचनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में प्रेम, भक्ति और सत्य का मार्ग अपनाकर हम सच्चे सुख को प्राप्त कर सकते हैं। उनकी कविताएँ और विचार आज भी छात्रों, साहित्य प्रेमियों और समाज के लिए प्रेरणा का एक स्रोत हैं।

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